Thursday, June 2, 2016

VoiceNotes


तहा उम्र आपका इंतज़ार किया
कभी इश्क़ कीय- कभी ऐतबार किया
आपको ढूँढ पाने की उम्मीद में
जाने, कितनो से हमने प्यार कीया 

हर शक्ल में आपको ढूँड़ा करते
हर दिल से दिल लगा लेते थे 
आपसे मुलाक़ात की आरज़ू में
हम जज़्बात को दाव पर लगा देते थे

आज आप रूबरू हो- ज़बान नम हैं
बेफ़िज़ूल गूँजने वाला- वो तन्हाई का शोर कम हैं

क्या ज़रूरी है लफ़्ज-ए-बायाँ हो?
हर बार कोई नयी इंतहा हों?
बीती कहानीया-चुटकुलो सी लगें 
कुछ ऐसी अपनी दास्ताँ हो,
कुछ ऐसी अपनी दास्ताँ हो।।



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