Tuesday, June 7, 2016

वजूद

हम लोग काफ़ी अजीब हैं
पूरी ज़िंदगी- ता उम्र, किसी सपने को अपना बनाने के पीछे दौड़ते हैं
और फिर जब कोई अपना होने लगता है
तो सवाल करने लगते हैं

क्या यही वो अपना है? 
या ज़िंदगी खुली आँखों से दिखा रही कोई सपना है?

गुत्थियों में गुत्थियाँ- उलझनो में उलझने 
हम क्यों इस दल-दल में धसते जाते हैं
अक्सर चाहत को पाने की चाह में
सपनों से बेवफ़ाई करते जाते हैं 

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