Friday, June 24, 2016

इंतज़ार

मैं आज अजब सा हूँ
कुछ कहना चाहता हूँ पर लफ़्ज़ नहीं मिल रहे
कुछ करना है मगर सोचता हूँ क्या और कैसे
मैं चल रहा हूँ- वक़्त टहरा हुआ है
कोई तो ज़ख़्म दिल का अचानक और भी गहरा हुआ है

मैं ख़ुश हूँ- जी हाँ मुझे ख़ुश होना चाहिए
फिर गुम-सम क्यों हूँ?
पूछने लगता हु हालात से
मैं मंज़िल से इतना दूर क्यों हूँ?

कुछ तो रूख हवा का है- जो रुका हुआ है
तूफ़ान से पहले ख़ामोशी का दौर चल रहा है

इंतज़ार है
इंतज़ार है अभ इस बारिश का
मेरे हुनर की नुमाइश का
ख़याल रख लेना वक़्त अब तू
मेरी ली हर आज़माइश का

Tuesday, June 21, 2016

सवाल

बादल तू गरजता क्यों है
पानी तू बरसता क्यों है
उनसे दूर जाने पर
मन मुलाक़ात को तरसता क्यों है?

Monday, June 20, 2016

आँख मिचोली


बूँदे क्यों प्यास बढ़ाती हैं?
तेरी याद गहरी होती जाती है
इंतज़ार रहता है इसे तेरी रुकसत का
तेरे जाते ही बरसात हो जाती है

Saturday, June 18, 2016

दीवानगी या हक़ीक़त

तस्वीरें बहुत हैं-बातें कई सारी हैं
कुछ उनसे सननी है-कुछ उनको बतानी है
महल के हर कमरे में दफ़न-मुन्फ़रीद कहानी है
वो मोहब्बत में मश्रूफ-मोहब्बत उनकी दीवानी हैं

Friday, June 17, 2016

आदाब

अनजान शहर- कड़कती धूप
पसीने से तर में प्यासा भटक रहा था
शरबत भी मिला- महफ़िल भी जमी
इन किताबों के हर पन्ने में बीता लम्हा धड़क रहा था


Monday, June 13, 2016

Wi-fi का दौर


बातें सभी जाननी हैं
पर किसी का सब्र-ए-अहतराम नहीं होता
4g का वक़्त चल रहा है
पर free browsing का इंतज़ाम नहीं होता

Google पर पूरा भरोसा है
अपनों पर ऐतबार नहीं होता?
वैसे इस दौर में लोगों को बनाना
आसान नहीं होता

farm ville तो हैं handy
पर गुल्शनो का दीदार नहीं होता
मेरी लिखी चिट्ठी का उनसे
इंतज़ार नहीं होता

Saturday, June 11, 2016

Magik की आत्म कथा

एक आदमी बड़े पेट का
हाथ में छड़ी size सेठ का
मैं छोटा सा भूरे रंग का
अपना रिश्ता love-hate का

दिन को मोटा अकेला रह ना पाता
मैं- अपने मुँह से कुछ कह ना पाता
रात को थक कर जब वो सो जाता
उसको मैं चाट-चाटकर सुलाता

पापा शाम को जब भी घर लोटकर आते है
मोटा अफ़सोस जताता है
हमारे बीच हुई बात-चीत का
अपनी ज़ुबान में अर्ज़ फ़रमाता है

खाना जब भी खिलता है
वो मेरी माँ बन जाता है
ख़ुद की हर बड़ती मुश्किल का
मुझपर blame डालता जाता है

दोपहर के खाने के बाद
वो पहाड़ बन जाता
उसके खर-राटों के शोर में
दिन मेरा कट जाता

एक आदमी बड़े पेट का
हाथ में छड़ी size सेठ का
मैं छोटा सा भूरे रंग का
अपना रिश्ता love-hate का

अपना रिश्ता love-hate का

Thursday, June 9, 2016

सितारों की महफ़िल

अदाओं की आड़ में दिल तोड़ने की सादिश
मोहब्बत के नाम पर बेवफ़ाई की नुमाइश
मैंने बेवफ़ाई को काफ़ी क़रीब से देखा है

इनकी आँखों में जैसे क़ुदरत का नूर बसा हो
इनकी ख़ूबसूरती में जाने कोई कोहिनूर चुपा हो
ख़ूबसूरत चाहरों को भी बहुत क़रीब से देखा है

जिस राह पर हम चल पड़े हैं
इस राह पर इनके मेले लगे हैं
राहगीर को अक्सर गिरते-सम्भालते
इन राहों को महकाशी में देखा है

Wednesday, June 8, 2016

मेहमान खाना

महफ़ूज़ रखीएगा धड़कनो के बीच
साँसों के आने-जाने का भी यही रास्ता मुहैया है 

Tuesday, June 7, 2016

वजूद

हम लोग काफ़ी अजीब हैं
पूरी ज़िंदगी- ता उम्र, किसी सपने को अपना बनाने के पीछे दौड़ते हैं
और फिर जब कोई अपना होने लगता है
तो सवाल करने लगते हैं

क्या यही वो अपना है? 
या ज़िंदगी खुली आँखों से दिखा रही कोई सपना है?

गुत्थियों में गुत्थियाँ- उलझनो में उलझने 
हम क्यों इस दल-दल में धसते जाते हैं
अक्सर चाहत को पाने की चाह में
सपनों से बेवफ़ाई करते जाते हैं 

Monday, June 6, 2016

पहली बारिश

बरसात और अश्क़ दोनो कमाल है
फ़ितरत में गीला पन
यह जज़्बात को देते पहचान है

दूँरिया शहरो की
भूरे बादलों से घिरा आसमान है
तेरे दीदार का इंतज़ार
मेरी महकशी का इंतज़ाम है

Saturday, June 4, 2016

दो पहलू

एक दीवार- बहुत लम्बी सी
कुछ इस तरफ़- कुछ उस तरफ़

ख़ूबसूरत पहनावे, महँगे पत्थर
झूठ से लीपे चहरे, लापता घर

फटे कपड़े, पत्थरों के बिस्तर
उम्मीद से भरी आँखें, रहने को खंडर

एक दीवार- बहुत लम्बी सी
कुछ इस तरफ़- कुछ उस तरफ़

निशा सी गहराई आँखे
आवाज़ में समंदर का स्वर

छवि उस हसीन चेहरे की
धोखा खाई मासूम नज़र

एक दीवार- बहुत लम्बी सी
कुछ इस तरफ़- कुछ उस तरफ़

बाँहों में ज़िंदगी का सुकून
होंठ बड़ा देते हैं, धड़कनो का जुनून

छूटा हुए दामन
निशा-बज़ सावन

अपनी कहानी बोहात दिलचस्प
कुछ इस तरफ़- कुछ उस तरफ़

निशा-बज़ means dry

एक पल

पहली मुलाक़ात बहुत ही कमाल थी
दिलों के मिलने पर मुलाक़ातें होने लगी बार बार थी

एक दौर फिर ऐसा आया के वो हमारे वजूद हो गए
और अब फ़र्क़ तक नहीं पड़ता जब के, वो कही है खो गए

एक वक़्त था ढलती शामों का
Airport पर उनके आने का
वो लम्बी ट्रिप्स पर जाने का
साथ साथ खाना बनाने का

उनके चहरे को देखा करते थे
नज़रों में खोया करते थे
उनकी बाहों में रहने को
झूठ मूट ही रोया करते थे

और अभ घुटन सी होती है
उनकी आवाज़ में भी, सुन लू अपना नाम अगर
पता नहीं कैसे आ पहूंचे
वो और हम ऐसी डगर

अक्सर बैठें सोचता हूँ
तनहा अकेला जब होता हूँ
पल भर की तो बात थी
ग़ज़ब था बिछड़ना- उससे ग़ज़ब मुलाक़ात थी 

Thursday, June 2, 2016

VoiceNotes


तहा उम्र आपका इंतज़ार किया
कभी इश्क़ कीय- कभी ऐतबार किया
आपको ढूँढ पाने की उम्मीद में
जाने, कितनो से हमने प्यार कीया 

हर शक्ल में आपको ढूँड़ा करते
हर दिल से दिल लगा लेते थे 
आपसे मुलाक़ात की आरज़ू में
हम जज़्बात को दाव पर लगा देते थे

आज आप रूबरू हो- ज़बान नम हैं
बेफ़िज़ूल गूँजने वाला- वो तन्हाई का शोर कम हैं

क्या ज़रूरी है लफ़्ज-ए-बायाँ हो?
हर बार कोई नयी इंतहा हों?
बीती कहानीया-चुटकुलो सी लगें 
कुछ ऐसी अपनी दास्ताँ हो,
कुछ ऐसी अपनी दास्ताँ हो।।



Wednesday, June 1, 2016

First touch


सूरज अब लग-भग डूब चुका था
कुछ सात-साड़े सात बजे होंगे
वो मेरी गोद में बैठी लहरों को देख रही थी
उसने लहरें पहले कभी नहीं देखी थी

शायद यह पहली बार है
के वो समन्दर के इतने क़रीब आइ
उसने पहले लहरों को जानने की कोशिश की
फिर उसके एहसास की ओर क़दम बढ़ाए

कुछ वक़्त लगा समझाने में
उस एहसास को वजिह कर पाने में
उनको लहरों से मिलाने में
उस बहर में खुद् क़ो पाने में

वजिह- define
बहर- ocean