Saturday, June 4, 2016

एक पल

पहली मुलाक़ात बहुत ही कमाल थी
दिलों के मिलने पर मुलाक़ातें होने लगी बार बार थी

एक दौर फिर ऐसा आया के वो हमारे वजूद हो गए
और अब फ़र्क़ तक नहीं पड़ता जब के, वो कही है खो गए

एक वक़्त था ढलती शामों का
Airport पर उनके आने का
वो लम्बी ट्रिप्स पर जाने का
साथ साथ खाना बनाने का

उनके चहरे को देखा करते थे
नज़रों में खोया करते थे
उनकी बाहों में रहने को
झूठ मूट ही रोया करते थे

और अभ घुटन सी होती है
उनकी आवाज़ में भी, सुन लू अपना नाम अगर
पता नहीं कैसे आ पहूंचे
वो और हम ऐसी डगर

अक्सर बैठें सोचता हूँ
तनहा अकेला जब होता हूँ
पल भर की तो बात थी
ग़ज़ब था बिछड़ना- उससे ग़ज़ब मुलाक़ात थी 

No comments:

Post a Comment