Saturday, June 11, 2016

Magik की आत्म कथा

एक आदमी बड़े पेट का
हाथ में छड़ी size सेठ का
मैं छोटा सा भूरे रंग का
अपना रिश्ता love-hate का

दिन को मोटा अकेला रह ना पाता
मैं- अपने मुँह से कुछ कह ना पाता
रात को थक कर जब वो सो जाता
उसको मैं चाट-चाटकर सुलाता

पापा शाम को जब भी घर लोटकर आते है
मोटा अफ़सोस जताता है
हमारे बीच हुई बात-चीत का
अपनी ज़ुबान में अर्ज़ फ़रमाता है

खाना जब भी खिलता है
वो मेरी माँ बन जाता है
ख़ुद की हर बड़ती मुश्किल का
मुझपर blame डालता जाता है

दोपहर के खाने के बाद
वो पहाड़ बन जाता
उसके खर-राटों के शोर में
दिन मेरा कट जाता

एक आदमी बड़े पेट का
हाथ में छड़ी size सेठ का
मैं छोटा सा भूरे रंग का
अपना रिश्ता love-hate का

अपना रिश्ता love-hate का

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