हमारे देश में जब दही ख़त्म हो जाता है
तो बाज़ार ना जाकर अक्सर पड़ोसी का दरवाज़ा खट-खटाया जाता है
हम शायरी में मोसिकी करने निकले पर पता चला के यह तो किसी और की हो चुकी है
दिल टूटा, Blog लिखने का इरादा छूटा, हाए इंटर्नेट तूने पहले ही मेरे ख़याल को लूटा।।
फिर क्या था- बस हमने भी पड़ोस का दरवाज़ा खट-खटा दिया।।
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Friday, June 17, 2016
आदाब
अनजान शहर- कड़कती धूप
पसीने से तर में प्यासा भटक रहा था
शरबत भी मिला- महफ़िल भी जमी
इन किताबों के हर पन्ने में बीता लम्हा धड़क रहा था
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