Tuesday, October 11, 2016

रावण

ये दो नाम रावण और राम
किसने समझा सीता, क्या हुआ तेरा अंजाम?

हमारे अंदर आज भी ये तीनों ज़िंदा है

अहंकार- रावण जैसे, हमें गुमराह करता रहता है
मर्यादा- राम की तरह बस नाम की ही रह गयी
ख़ुशियाँ- कभी सीता सी होती थी- जो अब धरती में दफ़्न हैं

ईद- दिवाली- दशहरा मनाते है
शौक़ से हम रावण के पुतले को जलते हैं
क्या हम सचमे ख़ुद से बेख़बर हैं?

यह दो नाम रावण और राम
हम सबका भी है वही एक अंजाम
तो क्यों ना शस्त्र उठाए हम
अहंकार को भस्म करें

मर्यादा- ख़ुशियों के आड़े ना आए
ऐसा कोई बंदो-बस्त करें!!

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