Wednesday, July 13, 2016

हक़ीक़त

ये समाज से अलग ज़रूर रखे गए है,
पर हर कोई गुनाहगार नहीं,
ग़लती इंसानी फ़ितरत है,
हर बंदा ईमानदार नहीं।
किताबों को घिलाफ़ो से परखना छोड़िए हुज़ूर,
हर सफ़ेद रोशनी- महताब नहीं।।



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