हमारे देश में जब दही ख़त्म हो जाता है
तो बाज़ार ना जाकर अक्सर पड़ोसी का दरवाज़ा खट-खटाया जाता है
हम शायरी में मोसिकी करने निकले पर पता चला के यह तो किसी और की हो चुकी है
दिल टूटा, Blog लिखने का इरादा छूटा, हाए इंटर्नेट तूने पहले ही मेरे ख़याल को लूटा।।
फिर क्या था- बस हमने भी पड़ोस का दरवाज़ा खट-खटा दिया।।
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Friday, July 22, 2016
आशिक़
लिख बहुत सकता हूँ लेकिन
क्या लिखूँ मालूम नहीं
जाना कहाँ है- यह पता है
ख़ुद का पता मालूम नहीं
इश्क़ बहुत हैं- क्यों और कबसे
इन सवालों का जवाब मालूम नहीं
उनकी रुकसत- मेरी मुहब्बत
मेहरबान क्यों मुक़द्दर? मालूम नहीं।।
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