हमारे देश में जब दही ख़त्म हो जाता है
तो बाज़ार ना जाकर अक्सर पड़ोसी का दरवाज़ा खट-खटाया जाता है
हम शायरी में मोसिकी करने निकले पर पता चला के यह तो किसी और की हो चुकी है
दिल टूटा, Blog लिखने का इरादा छूटा, हाए इंटर्नेट तूने पहले ही मेरे ख़याल को लूटा।।
फिर क्या था- बस हमने भी पड़ोस का दरवाज़ा खट-खटा दिया।।
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Tuesday, July 12, 2016
दिल
बात दिल की है, मुलाक़ात इत्तेफ़कन ही हुई थीं, दिल लगाने का कोई इरादा ना था, कब ख़याल मिले? कब इश्क़ हुआ? अब ये याद नहीं। भटका करता था जो आवारा गलियों में, दिल- अब आज़ाद नहीं।।
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