हमारे देश में जब दही ख़त्म हो जाता है
तो बाज़ार ना जाकर अक्सर पड़ोसी का दरवाज़ा खट-खटाया जाता है
हम शायरी में मोसिकी करने निकले पर पता चला के यह तो किसी और की हो चुकी है
दिल टूटा, Blog लिखने का इरादा छूटा, हाए इंटर्नेट तूने पहले ही मेरे ख़याल को लूटा।।
फिर क्या था- बस हमने भी पड़ोस का दरवाज़ा खट-खटा दिया।।
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Wednesday, July 13, 2016
हक़ीक़त
ये समाज से अलग ज़रूर रखे गए है,
पर हर कोई गुनाहगार नहीं,
ग़लती इंसानी फ़ितरत है,
हर बंदा ईमानदार नहीं।
किताबों को घिलाफ़ो से परखना छोड़िए हुज़ूर,
हर सफ़ेद रोशनी- महताब नहीं।।
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